Wo Raat Kuchh Aur Thi - 1 in Hindi Love Stories by Karunesh Singh books and stories PDF | वो रात कुछ और थी - 1

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वो रात कुछ और थी - 1

इतनी बेचैनी, इतनी घबराहट शायद ही कभी वर्तिका को हुई थी जितनी आज हो रही थी। रह रह कर घड़ी देखना, कभी माथे पे लटकती लटो को कान के पीछे करना तो कभी अपने कुर्ते को ठीक करना, बस स्टॉप पे खड़ी हुई वर्तिका को कोई भी देख कर कह सकता था की वो बिलकुल भी ठीक नहीं है।

बस स्टॉप के दूसरी साइड खड़ी एक आंटी तब से वर्तिका को देख रही थी जब उनसे ना रहा गया तब उन्होंने जाके वर्तिका से बात करनी चाही... " क्या बात है बेटा? बहुत परेशान लग रही हो? सब तुम्हें ही देख रहे हैँ, कोई तकलीफ? पानी हो तो पानी पी लो। "
आंटी की बातें सुन वर्तिका को एहसास हुआ की कबसे उसकी हरकतो के कारण लोग उसे घूरे जा रहे थे और आंटी के पास आकर बात करने पर कुछ की निगाहे भले हट गयी हो लेकिन कुछ तो अब भी उसको अजीब नज़रों से देखे जा रहे थे....

"थैंक यू आंटी, मैं ठीक हूं थोड़ा मन अशांत सा है बस". इतना कहते हुए वर्तिका ने पानी की बोतल खोल पानी पीना शुरू कर दिया. उसने सोचा आंटी अब चली जाएंगी लेकिन अगर ऐसा हो जाता तोह वर्तिका का दिन अच्छा हो जाता, और ऐसा होना जब लिखा ही नहीं था तो आंटी कैसे चली जाती इसलिए उसके पानी पीने का इंतज़ार करते खड़ी रही वो आंटी वर्तिका के पास।

वर्तिका ने जैसे ही पानी की बोतल बंद करके अपने बैग में रक्खी, और दूसरी तरफ खड़े होना चाहा आंटी ने उसका हाँथ पकड़ लिया। 'आंटी अब मैं ठीक हूं, थैंक यू फॉर योर कंसर्न, प्लीज़ लेट मी गो!' ये कहते हुए वर्तिका ने अपना हाँथ उनके हाँथ से दूर हटा लिया।

"भलाई का तो ज़माना ही नहीं है, एक तो मदद करी उसपे अकड़ दिखा रही ये लड़की!!!! " आस पास खड़े लोगो के सामने तमाशा बनता देख वर्तिका ने आंटी के सामने हाँथ जोड़ते हुए कहा " आपका बहुत बहुत शुक्रिया मेरी मदद करने के लिए वरना मेरा क्या ही होता,अब जाने दीजिये मुझे "!!!

आंटी ने ना जाने कैसे एक पिस्टल छुपा रक्खी थी अपनी साड़ी में जो अब वर्तिका की कमर से उन्होंने सटा रखी थी, वर्तिका ने जैसे ही बन्दूक की नली महसूस की उसने कुछ कहना चाहा ही था की आंटी ने धीरे से उससे कहा " पर्स में रक्खा वो सोने का सामान दे दो जो खरीद के तुम आयी हो, वरना अभी के अभी गोली शरीर के आर पार होगी और मेरे आदमी पास ही हैँ मुझे भागने में टाइम नहीं लगेगा, चिल्लाना बिलकुल मत वरना जान से जाओगी "।

वर्तिका सोचने समझने की शक्ति खो चुकी थी, उसका दिमाग़ सुन्न हो गया था। जैसे ही आंटी ने सोने के सामान की बात कही, उसको महसूस हुआ यही वो खतरा था शायद जिससे उसकी 6th सेन्स उसको आगाह कर रही थी. दुकान से निकलने के बाद से ही वर्तिका को खुद के ऊपर कुछ नज़रेँ महसूस हो रही थी लेकिन उसने उस फीलिंग को नज़रअंदाज़ करके सहज़ रहने का सोचा था। लेकिन जो हम सोचते हैँ वो होता ही कहाँ हैँ!!! वर्तिका को अब सबकी दी हुई नसीहत याद आ रही थी खास तौर से जब प्रशांत ने उससे कहा था की ये एरिया ठीक नहीं और वो उसके बगैर शॉपिंग पे ना जाये......